मोदी जी, बेमौसम बारिश के आलावा किसानों के दुश्मन और भी हैं

बेमौसम बारिश से फसलों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए सरकार ने हालांकि किसानों के लिए राहत पैकेज की घोषणा कर दी है, लेकिन सिर्फ इसी से कृषि सेक्टर और ग्रामीण भारत की तस्वीर बदलने वाली नहीं है।
कृषि पर निर्भर रहने वाली करीब तीन चौथाई से अधिक आबादी को बेमौसम बारिश से कहीं ज्यादा बड़ा दूसरे संकट का सामना करना पड़ रहा है।
ग्लोबल बाजार में कच्चे तेल में कमी पर हम भले ही जश्न मना रहे हैं, लेकिन कुछ हद तक यही हमारे कृषि सेक्टर को नुकसान भी पहुंचा रहा है।  

क्या है दूसरी परेशानियां:
-पिछले साल अक्टूबर से इस साल मार्च तक कृषि एक्सपोर्ट 11%
कम होकर 15 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। ब्राजील करेंसी में गिरावट,
ईरान और दुनिया के प्रमुख देशों के साथ न्यूक्लीयर मुद्दे पर बातचीत
के अलावा ग्लोबल मार्केट में कमोडिटी की कीमतों में आई कमी भी
इसकी बड़ी वजह है।

-कृषि एक्सपोर्ट में कमी किसानों की जेब पर संकट बढ़ रही है।  इससे किसानों
के पास गर्मी की फसल उगाने के लिए बीज, खाद खरीदने के लिए पर्याप्त पैसे
नहीं हैं। ऊपर से मौसम विभाग की मॉनसून को लेकर हाल ही में की गई
भविष्यवाणी भी डराने वाली है। मौसम विभाग के मुताबिक, जून-अक्टूबर मॉनसून
औसत से कम रहने वाला है। जाहिर है. अगर ऐसा होता है तो अगली
फसल की भी पैदावार कम होने की आशंका है।

-देश में ऐसी सोच बन रही है कि मोदी सरकार इस कृषि संकट से निपटने पर
ज्यादा ध्यान नहीं दे रही है। जानकारों के मुताबिक अगर ऐसा होता है तो
इकोनॉमिक रिफॉर्म को तेजी से लागू करने की सरकार की योजना को झटका
लग सकता है।

-2 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी वाले देश में कृषि का योगदान भले ही केवल
15 % हो, लेकिन इस पर करीब 60 परसेंट आबादी की रोजी-रोटी चलती है।
अगर कृषि संकट फैलता है तो देशभर में इसके कई गंभीर राजनीतिक असर से
इनकार नहीं किया जा सकता है।

-मोदी सरकार इस संकट से निपटने की कोशिश कर रही है लेकिन
कुछ संकट ऐसे हैं जिस पर उसका नियंत्रण नहीं है। मसलन, पिछले साल
की तरह इस बार शायद ही ईरान भारतीय चीनी, सोयामील,
जौ और बासमती चावल के लिए प्रीमियम का भुगतना करें, क्योंकि कुछ
पश्चिमी बंदिशें हटने के बाद ईरान कहीं और से इन चीजों के इंपोर्ट की
कोशिश कर रहा है।

-इसी तरह चीन के कॉटन को स्टॉक करने की योजना बंद करने
से भारत के कॉटन एक्सपोर्ट को धक्का लगा है तो थाईलैंड की गैर-बासमती
चावल के स्टॉक को कम करने की कोशिश से भारत के गैर-बासमती चावल
के एक्सपोर्ट को झटका लगा है।

-दूसरी तरफ, ब्राजील की करेंसी रियाल में गिरावट के बाद दुनिया का बाजार
भारतीय शुगर के लिए आकर्षक नहीं रहा। इसी बीच, ग्लोबल क्रूड की कीमत
में आई भारी कमी ने उन अनाजों और तेलहन की कीमतों पर दबाव बढ़ा दिया
है जिससे बायो-फ्यूल तैयार किया जाता है।

-सस्ते कच्चे तेल से अंतर्राष्ट्रीय भाड़े में भी कमी आई और इससे एशिया के खरीदारों
के लिए दक्षिण अमेरिका का मक्का और सोयामील जैसी कमोडिटीज के दाम कम
हो गए।

-हाल की रुपए में आई गिरावट को छोड़ दें तो ये लगातार मजबूत बना हुआ है।
इससे ग्लोबल मार्केट में भारतीय एग्रो कमोडिटीज जहां महंगे हो रहे हैं वहीं इंपोर्ट
सस्ता हो रहा है।

-जानकारों का मानना है कि कृषि सेक्टर में सुधार के लिए जल्द कदम नहीं उठाए गए
तो फार्म एक्सपोर्ट में आगे और कमी आएगी, जो कि कृषि संकट को बढ़ाने में आग में
घी का काम करेगा।

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