अमेरिका का फेडरल रिजर्व ने ब्याज दर स्थिर रखा, बढ़ता तो भारत पर क्या असर होता

अमेरिका का केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने ब्याज दर को रिकॉर्ड निचले स्तर  0-0.25% पर स्थिर रखा है। कुछ जानकारों को इसमें बढ़ोतरी का अनुमान था जिससे शेयर बाजार, बुलियन मार्केट पर दबाव देखा जा रहा था। अंतर्राष्ट्रीय इकोनॉमी जगत में कमजोरी की आशंका, लगातार कम घरेलू महंगाई दर और फाइनेंशियल मार्केट में अस्थिरता ने ब्याज दर बढ़ाने के फेडरल रिजर्व के संभावित फैसले पर ब्रेक लगाने का काम किया है।

बुधवार और गुरुवार को दो दिनों की बैठक के बाद फेडरल रिजर्व ने कहा कि हाल की ग्लोबल इकोनॉमी के हालात और फाइनेंशियल मार्केट में विकास कुछ हद तक इकोनॉमिक गतिविधियों की चाल पर लगाम लगा सकता है जिससे निकट भविष्य में महंगाई के और नीचे जाने की संभावना है। साथ ही ये भी कहा गया कि अमेरिकी इकोनॉमी करीब संतुलित बनी हुई है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय ग्रोथ पर फेडरल रिजर्व गंभीरता से नजर रखे हुए है। हालांकि केंद्रीय बैंक के इस साल कभी भी ब्याज दर बढ़ाने के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है। ताजा इकोनॉमिक प्रोजेक्शन के मुताबिक, 17 में 13 फेड पॉलिसीमेकर्स इस साल ब्याज दर में कम से कम एक बढ़ोतरी की गुंजाइश देखते हैं। फेडरल रिजर्व की अगली पॉलिसी बैठक अक्टूबर और दिसंबर में है।

जानकारों के मुताबिक, फेडरल  रिजर्व के इस फैसले से भारतीय और इमर्जिंग मार्केट को राहत मिलेगी, क्योंकि ब्याज दर बढ़ने से विदेशी निवेशकों की बिकवाली और बढ़ सकती थी। विेदेशी संस्थागत निवेशकों ने इस महीने की शुरुआत से भारतीय बाजार से 20 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की बिकवाली कर चुके हैं।

ब्याज दर की टाइमिंग पर फेडरल रिजर्व ने कहा कि हम लेबर मार्केट में और सुधार के साथ महंगाई दर में बढ़ोतरी का इंतजार करेंगे। फेडरल रिजर्व ने  2% महंगाई दर का लक्ष्य रखा है। बता दें कि अमेरिका में आखिरी बार जून 2006 में ब्याज दर में बढ़ोतरी की गई थी और 2008 के आखिरी से ब्याज दर शून्य के करीब बनी हुई है। अमेरिका में ताजा बेरोजगारी दर 5.1% है जो कि फेड के ब्याज दर बढ़ाने के शुरुआती बेंचमार्क 6.5% काफी कम है लेकिन कम महंगाई अब भी उसके लिए रास्ते में रोड़ा बना हुआ है।

दूसरी ओर, अमेरिका का पर्सनल कंजम्शन एक्सपेंडिचर इंडेक्स 0.3-0.5% बना हुआ है जो कि जून के 0.6-0.8%  के मुकाबले कम है। अगर बात कोर इनफ्लेशन (एनर्जी और फूड निकाल करके) के प्रोजेक्शन की बात करें तो वो 1.3-1.4%  पर स्थिर है जो कि फेडरल रिजर्व के लक्ष्य 2% से कम है।

((अगर अमेरिका में ब्याज बढ़ जाता तो भारत पर क्या असर पड़ता
http://beyourmoneymanager.blogspot.in/2015/09/blog-post_9.html

अगर ब्याज बढ़ जाता तो, क्या होता:
-अमेरिकी डॉलर और मजबूत होता, शेयर मार्केट से
पैसा निकालकर निवेशक इसे बाजार से ज्यादा सुरक्षित
साधनों मसलन, सरकारी बॉण्ड में निवेश करते
यानी शेयर बाजार में बिकवाली बढ़ती

- अमेरिकी डॉलर मजबूत होने से कमोडिटी एक्सपोर्ट
करने वाले देशों मसलन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड,
ब्राजील और इंडोनेशिया पर और दबाव बढ़ता। इन देशों
के करंसी मार्केट में बिकवाली बढ़ती

-एनर्जी, सोना, डेयरी, मेटल प्रोडक्ट की कीमतों में और
कमी आने की संभावना बढ़ जाती

((ग्लोबल मार्केट के लिए 17 सितंबर क्यों है अहम 
http://beyourmoneymanager.blogspot.in/2015/09/17.html

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