अपने ही बनाए जाल में कैसे उलझा 'ड्रैगन' चीन?

दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी चीन के ऊपर इन दिनों संकट के बादल मंडरा रहे हैं। चीन में एक बार फिर से स्लोडाउन की आशंका गहरा गई है। जीडीपी ग्रोथ में स्थिरता, एक्सपोर्ट में गिरावट और सबसे बड़ी बात शेयर बाजार में कोहराम बहुत कुछ यहां के अंदरूनी हालात बयान कर रहे हैं।

चीन का शेयर बाजार शंघाई कंपोजिट इंडेक्स 24 अगस्त को एक ही दिन में इस साल की अबतक की बढ़त को गंवाते हुए 8.5% फिसलकर 3209.9 पर पहुंच गया। वहीं इस दिन भारत का निफ्टी चीन में स्लोडाउन और ग्लोबल स्लोडाउन की आशंका में 6%, यूरोपीय शेयर बाजार  3% जबकि दूसरे एशियाई शेयर बाजार 4-5% लुढ़के।

इससे पहले, जुलाई के तीन हफ्ते में शंघाई कंपोजिट 30% से ज्यादा फिसला, जबकि शेंझेन कंपोजिट इंडेक्स इस साल 12 जून की अपनी रिकॉर्ड ऊंचाई से 40% गोता लगाया।  तीन हफ्ते की इस गिरावट से चीन के शेयर बाजार के मार्केट कैपिटलाइजेशन 10 खरब डॉलर में से तीन खरब डॉलर कम हो गया। इसके बाद 27 जुलाई को शंघाई कंपोजिट 8.5 % लुढ़ककर 3725 पर पहुंच गया जो कि पिछले 15 सालों की एक दिन की दूसरी सबसे बड़ी गिरावट है। पिछले दो साल में चीन के दोनों शेयर बाजार शंघाई कंपोजिट इंडेक्स और शेंझेन कंपोजिट इंडेक्स में इस साल जून तक जबरदस्त उछाल देखने को मिला है। दोनों इंडेक्स लगातार बढ़त बनाते हुए 8 साल के शीर्ष पर पहुंच गए थे। शंघाई कंपोजिट पिछले एक साल के दौरान जहां 152% चढ़ा, वहीं शेंझेन कंपोजिट में 191% का उछाल देखा गया। शंघाई कंपोजिट इस साल 12 जून को 5,166 पर बंद हुआ जो कि एक साल पहले 2,052
पर बंद हुआ था।

चीन में संकट के कारण:
-बाजार में अधिक नगदी: शेयर बाजार में तेजी की वजह सिस्टम में अधिक नगदी
(ब्याज दर कम करने के कारण), सरकारी मदद और बाजार के प्रति निवशकों की
दीवानगी बताई जा रही है। बाजार में तेजी के दौरान चीन का केंद्रीय बैंक पीपुल्स
बैंक ऑफ चाइना ने ब्याज दरों और कैश रिजर्व रेश्यो में कई बार कटौती की, जिससे
सिस्टम नगदी की अधिक सप्लाई हो गई। चीन का M2 यहां तक कि अमेरिका से
भी 70% ज्यादा 20 खरब डॉलर था।

- वैकल्पिक मौके की कमी :  एक तरफ बाजार में नगदी की अधिक सप्लाई और
दूसरी तरफ निवेश के बेहतर विकल्प की कमी ने शेयर बाजार की रौनक बढ़ाने
में मदद की। इकोनॉमी में धीमेपन, सोने-कच्चे तेल की कीमतों में कमी और रियल
इस्टेट की कीमतों में गिरावट से निवेशक अधिक मुनाफे के लिए शेयर बाजार की
तरफ आकर्षित हुए।

-मार्जिन ट्रेडिंग: बाजार में नगदी बढ़ने के अलावा मार्जिन ट्रेडिंग (कर्ज लेकर शेयर
बाजार में पैसे लगाना) में भी जोरदार बढ़ोतरी हुई थी। इस साल जून के शुरुआत
में मार्जिन फाइनेंसिंग आउटस्टैंडिंग  RMB 2 खरब था जो कि मार्केट कैप के फ्री
फ्लोट का 12%, और जीडीपी का 3.5 % होता है। निवेशकों को मार्जिन फंडिंग
मुहैया कराने के लिए 2011 में एक नई संस्था CSFC यानि China Securities
Finance Corporation  बनाया गया था। सरकारी बैंक मसलन, चीन मर्केंटाइल
बैंक, ICBC, चीन कंस्ट्रक्शन बैंक बगैरह ने भी मार्जिन ट्रेडिंग के 200 अरब डॉलर
मुहैया कराए थे।

-रीटेल निवेशकों की दीवानगी: इस दौरान रीटेल निवेशकों की शेयर बाजार में
गजब की दीवानगी देखी गई। रीटेल निवेशकों की संख्या 20 करोड़ पहुंच गई। रीटेल
निवेशकों की ये दीवानगी 1940 के दशक के अमेरिका की याद दिलाती है। 2014 के

दौरान मार्जिन ट्रेडिंग अकाउंट की संख्या इससे पहले साल के मुकाबले 86 % बढ़ी।
फिलहाल चीन के शेयर बाजार में 85% ट्रेडिंग रीटेल निवेशकों द्वारा की जा रही है।
-P2P  लेंडिंग: बाजार में अधिक नगदी, सरकार द्वारा सहायता के अलावा शेयर खरीदने
के लिए P2P प्लेटफॉर्म से भी कर्ज दिए जा रहे थे। इसके तहत सरकारी सीमा से 10 गुना
अधिक तक शेयर खरीद-बिक्री के लिए कर्ज दिए जा रहे थे।
-कमजोर फंडामेंटल: लेकिन, इस दौरान शेयर बाजार जैसा प्रदर्शन कर रहा था, वास्तविक
इकोनॉमी में वैसा प्रदर्शन नहीं दिख रहा था यानी इकोनॉमी और बाजार के प्रदर्शन में
सह-संबंध के प्रमाण नहीं मिल रहे थे। PE (Price to Equity) रेश्यो 40 (ग्लोबल औसत
18.5) के पार पहुंच चुका था। चीन की जीडीपी ग्रोथ इस साल जून तिमाही में 7% दर्ज
की गई जो कि फाइनेंशियल क्राइसिस के बाद सबसे कमजोर है। फिक्स्ड असेट इन्वेस्टमेंट
(FAI), जो कि एक प्रमुख इकोनॉमिक ड्राइवर है, की ग्रोथ 2000 के बाद सबसे कम रही।
चीन का औद्योगिक उत्पादन भी कमजोर होकर 2008 के आर्थिक संकट वाला दौर में
पहुंच गया।

शेयर बाजार में भूचाल रोकने के लिए सरकार के कदम: शेयर बाजार में लगातार गिरावट से चीन की सरकार और प्रशासन के हाथ-पांव फूल गए। बाजार और सिस्टम में भरोसा लौटाने के लिए चीन का सरकार, पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना और चीन सिक्योरिटीज फाइनेंस कॉर्पोरेशन (GSFC) ने दनादन उपाय करने शुरू कर दिए।

ये रहे उपाय-
-कॉर्पोरेट के अनुरोध पर आधे से अधिक शेयर को हफ्तों तक ट्रेडिंग से सस्पेंड
कर दिया

-शेयरों की खरीद बढ़ाने के लिए GSFC को और पैसे दिए गए

-ब्रोकर्स को फंडिंग के लिए केंद्रीय बैंक को GSFC को और फंड देने की
अनुमति दी गई

-20 बड़े ब्रोकर्स के ग्रुप को शंघाई कंपोजिट इंडेक्स के 4500 पहुंचने तक सिर्फ
शेयर खरीदने की अनुमति दी गई, उनके द्वारा शेयरों की बिक्री पर रोक लगा
दी गई।

-IPO  लाने पर रोक लगा दी गई, ताकि सेकंडरी मार्केट से निवेशक पैसा निकालकर
आईपीओ में ना लगा दें।

-25 म्युचुअल फंड ने अगले एक साल तक सिर्फ शेयर खरीदने का फैसला लिया, शेयर
बेचने का नहीं

-किसी भी कंपनी में 5% से अधिक हिस्सेदारी वाले शेयरहोल्डर्स और सीनियर कर्मचारी
पर अगले छह महीने तक शेयरों की बिक्री करने पर रोक लगा दी गई

-शॉर्ट सेलिंग में शामिल निवेशकों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा शुरू किया गया

-पेंशन और इंश्योरेंस कंपनियों द्वारा शेयर बाजार में निवेश की सीमा में ढील दी गई

         तमाम उपायों के बावजूद चीन के शेयर बाजार में गिरावट की सिलसिला थमा नहीं रहा है। इसी सिलसिले में ग्लोबल मार्केट में अपनी पकड़े फिर से मजबूत बनाने के लिए अपनी करंसी युआन का अवमूल्यन भी किया। हालांकि, इसके लिए चीन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विरोध भी झेलना पड़ रहा है।

((युआन के अवमूल्यन से दुनिया में खलबली, भारत के लिए इसके मायने
http://beyourmoneymanager.blogspot.in/2015/08/blog-post_98.html))

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