GDP में विदेशी कर्ज का हिस्सा बढ़कर 24% हुआ
देश पर विदेशी कर्ज इस साल जून तिमाही में 482.9 अरब डॉलर रहा, जो कि इस साल की मार्च तिमाही के मुकाबले 1.8% और पिछले साल की जून तिमाही के मुकाबले 6.6% ज्यादा है। इस साल मार्च तिमाही तक देश पर 474.4 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज था जबकि पिछले साल जून तिमाही तक 453.1 अरब डॉलर का कर्ज था।
रिजर्व बैंक ने इसकी जानकारी दी।
रिजर्व बैंक के मुताबिक, जून 2015 के अंत में भारत के विदेशी कर्ज में मुख्य रूप से अनिवासी भारतीयों की बकाया जमाराशियों और वाणिज्यिक उधारों में बढ़ोतरी के कारण बढ़त देखी गई।
इसके अलावा बाह्य ऋण की मात्रा में वृद्धि आंशिक रूप से मूल्य निर्धारण प्रतिलाभों के कारण कम हो गई जिसका कारण भारतीय रुपया और अन्य प्रमुख मुद्राओं की तुलना में अमरीकी डॉलर का अधिमूल्यन था। जून 2015 के अंत में बाह्य ऋण/GDP अनुपात 24.0% रहा जिसमें मार्च 2015 के अंत में 23.7% के स्तर से वृद्धि दर्ज हुई।
जून तिमाही 2015 के अंत में भारत के बाह्य ऋण से संबंधित खास बातें:
-भारत का बाह्य ऋण जून 2015 के अंत में 482.9 अरब अमरीकी डॉलर था जिसमें मार्च 2015 के स्तर से 9.5 अरब अमरीकी डॉलर की वृद्धि दर्ज की गई।
-भारतीय रुपया और अन्य प्रमुख मुद्राओं की तुलना में अमरीकी डॉलर के अधिमूल्यन के कारण मूल्य निर्धारण प्रतिलाभों को छोड़कर इस तिमाही के दौरान बाह्य ऋण में वृद्धि 10.1 अरब अमरीकी डॉलर हो गई होती।
-वाणिज्यिक उधार बाह्य ऋण का सबसे बड़ा घटक बना रहा जिसकी हिस्सेदारी 38.4% रही। इसके बाद अनिवासी भारतीयों की जमाराशियां (24.8 %) और अल्पावधि व्यापार ऋण (16.6 %) की हिस्सेदारी रही।
-कुल ऋण में अल्पावधि ऋण (मूल परिपक्वता) की हिस्सेदारी में पिछली तिमाही और पिछले वर्ष की इस तिमाही में गिरावट देखी गई क्योंकि सरकारी खज़ाना बिलों में एफआईआई निवेश कम हो गया।
-तदनुसार, विदेशी मुद्रा भंडार में अल्पावधि ऋण (मूल परिपक्वता) का अनुपात जून 2015 के अंत में घटकर 23.7% हो गया (मार्च 2015 के अंत में 24.8 %)। इसी प्रकार अवशिष्ट परिपक्वता आधार पर विदेशी मुद्रा भंडार में अल्पावधि ऋण का अनुपात जून 2015 के अंत में 51.9 % आंका गया (मार्च 2015 के अंत में 54.2%)।
-अमरीकी डॉलर मूल्यवर्गांकित ऋण भारत के विदेशी ऋण का सबसे बड़ा घटक रहा जिसकी जून 2015 में 58.1% हिस्सेदारी रही। इसके बाद भारतीय रुपया (28.4%), एसडीआर (5.9 %), जापानी येन (3.9 %) और यूरो (2.3 %) की हिस्सेदारी रही।
-उधारकर्ता श्रेणियों में सरकार का बकाया ऋण थोड़ा घटा जबकि गैर-सरकारी ऋण में वृद्धि हुई और जून 2015 के अंत में कुल बाह्य ऋण में उनकी हिस्सेदारी क्रमश: 18.5% और 81.5% रही।
ऋण सेवा भुगतान पिछली तिमाही के 7.5 % पर बने रहे।
आपको बता दें कि मार्च और जून तिमाही तक के विदेशी कर्ज के आंकड़े रिजर्व बैंक जारी करता है जबकि सितंबर और दिसंबर तिमाहियों के आंकड़े केंद्रीय वित्त मंत्रालय जारी करता है।
((भारत पर बाहरी कर्ज इस साल मार्च अंत तक 6.6% बढ़ा
http://beyourmoneymanager.blogspot.in/2015/08/66.html
देश पर विदेशी कर्ज इस साल जून तिमाही में 482.9 अरब डॉलर रहा, जो कि इस साल की मार्च तिमाही के मुकाबले 1.8% और पिछले साल की जून तिमाही के मुकाबले 6.6% ज्यादा है। इस साल मार्च तिमाही तक देश पर 474.4 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज था जबकि पिछले साल जून तिमाही तक 453.1 अरब डॉलर का कर्ज था।
रिजर्व बैंक ने इसकी जानकारी दी।
रिजर्व बैंक के मुताबिक, जून 2015 के अंत में भारत के विदेशी कर्ज में मुख्य रूप से अनिवासी भारतीयों की बकाया जमाराशियों और वाणिज्यिक उधारों में बढ़ोतरी के कारण बढ़त देखी गई।
इसके अलावा बाह्य ऋण की मात्रा में वृद्धि आंशिक रूप से मूल्य निर्धारण प्रतिलाभों के कारण कम हो गई जिसका कारण भारतीय रुपया और अन्य प्रमुख मुद्राओं की तुलना में अमरीकी डॉलर का अधिमूल्यन था। जून 2015 के अंत में बाह्य ऋण/GDP अनुपात 24.0% रहा जिसमें मार्च 2015 के अंत में 23.7% के स्तर से वृद्धि दर्ज हुई।
जून तिमाही 2015 के अंत में भारत के बाह्य ऋण से संबंधित खास बातें:
-भारत का बाह्य ऋण जून 2015 के अंत में 482.9 अरब अमरीकी डॉलर था जिसमें मार्च 2015 के स्तर से 9.5 अरब अमरीकी डॉलर की वृद्धि दर्ज की गई।
-भारतीय रुपया और अन्य प्रमुख मुद्राओं की तुलना में अमरीकी डॉलर के अधिमूल्यन के कारण मूल्य निर्धारण प्रतिलाभों को छोड़कर इस तिमाही के दौरान बाह्य ऋण में वृद्धि 10.1 अरब अमरीकी डॉलर हो गई होती।
-वाणिज्यिक उधार बाह्य ऋण का सबसे बड़ा घटक बना रहा जिसकी हिस्सेदारी 38.4% रही। इसके बाद अनिवासी भारतीयों की जमाराशियां (24.8 %) और अल्पावधि व्यापार ऋण (16.6 %) की हिस्सेदारी रही।
-कुल ऋण में अल्पावधि ऋण (मूल परिपक्वता) की हिस्सेदारी में पिछली तिमाही और पिछले वर्ष की इस तिमाही में गिरावट देखी गई क्योंकि सरकारी खज़ाना बिलों में एफआईआई निवेश कम हो गया।
-तदनुसार, विदेशी मुद्रा भंडार में अल्पावधि ऋण (मूल परिपक्वता) का अनुपात जून 2015 के अंत में घटकर 23.7% हो गया (मार्च 2015 के अंत में 24.8 %)। इसी प्रकार अवशिष्ट परिपक्वता आधार पर विदेशी मुद्रा भंडार में अल्पावधि ऋण का अनुपात जून 2015 के अंत में 51.9 % आंका गया (मार्च 2015 के अंत में 54.2%)।
-अमरीकी डॉलर मूल्यवर्गांकित ऋण भारत के विदेशी ऋण का सबसे बड़ा घटक रहा जिसकी जून 2015 में 58.1% हिस्सेदारी रही। इसके बाद भारतीय रुपया (28.4%), एसडीआर (5.9 %), जापानी येन (3.9 %) और यूरो (2.3 %) की हिस्सेदारी रही।
-उधारकर्ता श्रेणियों में सरकार का बकाया ऋण थोड़ा घटा जबकि गैर-सरकारी ऋण में वृद्धि हुई और जून 2015 के अंत में कुल बाह्य ऋण में उनकी हिस्सेदारी क्रमश: 18.5% और 81.5% रही।
ऋण सेवा भुगतान पिछली तिमाही के 7.5 % पर बने रहे।
आपको बता दें कि मार्च और जून तिमाही तक के विदेशी कर्ज के आंकड़े रिजर्व बैंक जारी करता है जबकि सितंबर और दिसंबर तिमाहियों के आंकड़े केंद्रीय वित्त मंत्रालय जारी करता है।
((भारत पर बाहरी कर्ज इस साल मार्च अंत तक 6.6% बढ़ा
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