अब बैंक ग्राहकों को ब्याज दर में कटौती का फायदा जल्द देंगे, 1 अप्रैल से नए नियम लागू, गाइडलाइंस जारी

रिजर्व बैंक ने लेंडिंग रेट्स (जिस दर पर बैंक ग्राहकों को कर्ज देते हैं) की गणना के लिए नए नियम जारी कर दिए हैं। नए नियम अगले साल एक अप्रैल से लागू होंगे। नए नियम के तहत बैंकों को पॉलिसी रेट कटौती का फायदा ग्राहकों को जल्द से जल्द देना होगा।

लेंडिंग रेट्स की गणना की मौजूदा व्यवस्था में ऐसा कुछ नहीं है। अगर ऐसा होता तो, इस साल रिजर्व बैंक ने प्रमुख दरों में जितनी कटौती कर चुका है, बैंक उसका केवल आधा ही फायदा लोन ग्राहकों को नहीं देते। इस साल रिजर्व बैंक प्रमुख दरों में 1.25% की कटौती कर चुका है, लेकिन बैंक सिर्फ उसका आधा यानी 0.60% की कटौती का ही फायदा ग्राहकों को दे पाए हैं। रिजर्व बैंक इसके लिए बैंकों को अक्सर फटकार भी लगाते रहता है, लेकिन बैंक अधिक कॉस्ट ऑफ फंडिंग (कोष की लागत) का हवाले देते हुए कर्ज की दर रिजर्व बैंक द्वारा प्रमुख दरों में की गई कटौती के अनुरूप देने से इनकार करते रहे हैं।

((अब बैंक कर्ज सस्ता करने में मनमानी नहीं कर सकेंगे !

बेस रेट की गणना के नए नियम क्या हैं और उससे होने वाले फायदे क्या हैं : 
बेस रेट की गणना के लिए अलग-अलग फॉर्मूले का इस्तेमाल किया जाता है। नए नियम मार्जिनल कॉस्ट ऑफ
फंड्स (MCLR) फॉर्मूले पर आधारित हैं, जबकि मौजूदा फॉर्मूले के मुताबिक कॉस्ट ऑफ फंडिंग के आधार पर
बैंक बेस रेट में कमी का फैसला करते हैं। अभी बैंक बेस रेट को ऐवरेज कॉस्ट ऑफ फंड्स, मार्जिनल कॉस्ट ऑफ
फंड्स या ब्लेंडेड कॉस्ट ऑफ फंड्स (लायबिलिटीज) के आधार पर कैलकुलेट करते हैं। रिजर्व बैंक इसमें
पारदर्शिता बढ़ाना चाहता है।

इन दिशानिर्देशों के प्रमुख अंश नीचे दिए गए हैं:
दिनांक 01 अप्रैल 2016 को मंज़ूर किए गए सभी रुपया ऋणों और नवीकृत क्रेडिट सीमाओं का कीमत-निर्धारण सीमांत निधि लागत पर आधारित उधार दर (एमसीएलआर) के संदर्भ में किया जाएगा, जो कि ऐसे प्रयोजनों के लिए आंतिरक बेंचमार्क होगी।
-एमसीएलआर आंतरिक बेंचमार्क से संबद्ध एक टेनर होगी।
-वास्‍तविक उधार दरों का निर्धारण एमसीएलआर के साथ स्‍प्रेड
के घटकों को जोड़कर किया जाएगा।
-बैंक प्रत्‍येक माह पूर्व-घोषित तारीख को विभिन्‍न परिपक्‍वता अवधि की
अपनी एमसीएलआर की समीक्षा करेंगे और उन्‍हें जारी करेंगे।
-बैंक अस्थिर दर के ऋणों पर ब्‍याज की पुनर्निर्धारण तारीखें घोषित
करें। उन्‍हें पुनर्निर्धारण तारीखों से युक्‍त ऋणों की पेशकश या तो
ऋण/क्रेडिट सीमाओं की मंज़ूरी तारीख से संबद्ध करके करनी होगी
या एमसीएलआर की समीक्षा के साथ।
-पुनर्निर्धारण की अवधि एक वर्ष या उससे कम अवधि की होगी।
-ऋण की मंज़ूरी की तारीख को विद्यमान एमसीएलआर अगले
पुननिर्धारण की तारीख तक लागू होगी, भले ही अंतरिम अवधि
के दौरान बेंचमार्क में परिवर्तन किया गया हो।
-आधार दर से संबद्ध मौजूदा ऋण व क्रेडिट सीमाएं उनकी चुकौती
या नवीकरण, जैसा मामला हो, तक बने रहेंगी। मौजूदा
उधारकर्ताओं को भी पारस्‍परिक रूप से सहमत शर्तों पर सीमांत
निधि लागत पर आधारित उधार दर (एमसीएलआर) से
संबद्ध ऋण में परिवर्तित करने का विकल्‍प प्राप्‍त होगा।
-पूर्व की भांति, बैंकों द्वारा आधार दर की समीक्षा और
प्रकाशन किया जाना जारी रहेगा।

एमसीएलआर  से ग्राहकों को फायदा:
मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स फॉर्मूला से जहां ग्राहकों को कम रेट का फायदा मिलेगा, वहीं बैंक द्वारा पहले से
इंटरेस्ट रेट तय करने की प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित होगी। रिजर्व बैंक का कहना है कि इन गाइडलाइंस से उस इंटरेस्ट रेट पर कर्ज की उपलब्धता सुनिश्चित होगी, जो बैंकों के साथ ही कर्ज लेनदारों के लिए भी उपयुक्त
हो। केंद्रीय बैंक ने ये भी कहा है कि मार्जिनल कॉस्ट प्राइसिंग से बैंकों को ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनने में मदद मिलेगी और वे इकोनॉमिक ग्रोथ में योगदान कर सकेंगे।

बैंक अपने फ्लोटिंग रेट लोन के लिए इंटरेस्ट रीसेट डेट्स का उल्लेख कर सकते हैं। उनके पास रीसेट डेट्स के
साथ लोन की पेशकश का भी विकल्प होगा, जो लोन/ क्रेडिट लिमिट की स्वीकृति की तारीख से या MCLR की
रिव्यू की तारीख से लिंक्ड होगा। MCLR को रीसेट करने की अवधि एक साल या उससे कम होगी। लेकिन,
रिजर्व बैंक की गाइडलाइंस के मुताबिक, ये व्यवस्था रुपया में जारी लोन के लिए होगी।

जानकारों के मुताबिक, नए फॉर्मूले से लेंडिंग रेट्स तय करने में ज्यादा एकरूपता आएगी और रेट कट का फायदा कस्टमर्स को सही तरीके से मिल पाएगा।

क्या है मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड- संपत्तियों या निवेश के लिए धन जुटाने के मकसद से लिए गए उधार की बढ़ती लागत को मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड कहते हैं। आसान शब्दों में कहा जाए तो यदि बैंकों के ऋण की लागत पहले जितनी ही रहती है तो प्रत्येक अतिरिक्त ऋण पर आई लागत मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड कहलाएगी।

इसका मतलब ये हुआ कि यदि बैंक की मौजूदा कॉस्ट ऑफ बोरोइंग (cost of borrowing) 8 % है, लेकिन कल
अगर इंक्रीमेंटल कॉस्ट ऑफ फंड्स (उधार की बढ़ती लागत ) 7.5% हो जाती है, तो कर्ज की दर की गणना करने
के मकसद से ये दर 7.5% होगी, न कि दोनों (8 और 7.5) का औसत।


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