एक्सपोर्ट में कोई भारी गिरावट नहीं: सरकार

सरकार के मुताबिक, पेट्रोलियम उत्‍पादों और रत्‍न व आभूषणों के निर्यात में गिरावट को छोड़ दें तो निर्यात में कोई भारी गिरावट नहीं।

इस साल नवंबर में लगातार 12वें महीने एक्सपोर्ट में गिरावट आई है, लेकिन सरकार के लिए ये कोई चिंता की बात नहीं है। सरकार का मानना है कि हाल के महीनों में भारत के निर्यात पर प्रकाशित आंकड़ों से दहशत का आम माहौल पैदा हो गया था। अप्रैल-नवंबर 2015 में कुल निर्यात 174.3 अरब अमेरिकी डॉलर दर्ज किया गया। यह गत वर्ष इस अवधि के दौरान हुए निर्यात की तुलना में 18.5 प्रतिशत कम था। लेकिन अक्‍टूबर 2015 के नवीनतम औद्योगिक उत्‍पादन सूचकांक (आईआईपी) में गत वर्ष की तुलना में महत्‍वपूर्ण 9.8 प्रतिशत की वृद्धि दिखाई गई है।संचयी अवधि अप्रैल-अक्‍टूबर 2015 के दौरान आईआईपी की दर 4.8 प्रतिशत रही।(यह गत वर्ष अप्रैल-अक्‍टूबर 2014 की इस अवधि के दौरान हुई वृद्धि की तुलनामें 2.2 प्रतिशत अधिक है। व्‍यापार के आंकड़ों पर नजदीक से नजर डालने पर आंकड़ो में इस अंतर का संतोषजनक व्‍याख्‍या मिल जाती है।

पेट्रोलियम उत्‍पाद के निर्यात में 52 प्रतिशत की गिरावट आई है। पेट्रोलियम उत्‍पाद के मामले में कच्‍ची सामग्री ,कच्‍चे तेल की कीमतों में काफी गिरावट दर्ज की गई है। अगर पेट्रोलियम उत्‍पादों के निर्यात की कमी को छोड़ दें तो निर्यात में डॉलर के रूप में केवल 9.6 प्रतिशत की गिरावट आई है। और गैर तैलीय निर्यात में रुपये के रूप में यह गिरावट मात्र 3.7 प्रतिशत ही है। इसी तरह रत्‍नों और आभूषणों के निर्यात में 9.5 प्रतिशत की गिरावट आई है। इस मामले में भी कच्‍चे माल की कीमतों में भारी गिरावट आई है, खासकर सोने की कीमतों में। ऐसे में इन श्रेणियों में निर्यात में गिरावट बदलती आयात कीमतों के ही कारण है।

गैर तैलीय और गैर रत्‍न व आभूषण क्षेत्र में निर्यात में आई डॉलर के रूप में गिरावट 9.7 और रुपये में यह केवल 3.7 प्रतिशत ही है। इससे प्राथमिक स्‍तर पर निर्यात के मामले में यह पता चलता है कि गैर तैलीय व गैर रत्‍न व आभूषण क्षेत्र को छोड़कर भारत के निर्यात में कोई भारी गिरावट नहीं आई है। इस बीच हालांकि कई क्षेत्रों में गिरावट दर्ज की गई है लेकिन सभी तरह के रेडीमेड कपड़ों,कारपेट, हस्‍तशिल्‍प, जूटनिर्माण ,दवा और आयुष,सेरेमिक उत्‍पाद, और ग्‍लासवेयर,चाय, अनाज के उत्‍पाद और अन्‍य प्रसंस्‍कृत आइटम के निर्यात में वृद्धि देखी गई है।

दरअसल नाम मात्र की गिरावट को भी मुद्रास्‍फीति से तुलना की जानी चाहिए।निर्यात का सही मूल्‍यांकन करने के लिए हमें डब्‍ल्‍यूपीआई को आधार बनाना चाहिए न कि उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक को। निर्यात का सही मूल्‍यांकन वास्‍तव में थोक बिक्री कारोबार है। जब हम रुपए में निर्यात के आंकड़ों की तुलना औसत नकारात्‍मक डब्‍ल्‍यूपीआई मुद्रा स्‍फीति की दर(-)3.3 प्रतिशत से करते हैं तो निर्यात में आयतन के मुकाबले गिरावट न के बराबर है।


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