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महिलाओं के सपने को उड़ान देता जीविका परियोजना, महिला सशक्तिकरण की ओर बढ़ता बिहार
महिला सशक्तिकरण की ओर अग्रसर बिहार

महिला सशक्तिकरण, देश, समाज और परिवार के उज्ज्वल भविष्य के लिए बेहद जरूरी है। राज्य सरकार ने प्रारंभ से ही न्याय के सेथ विकास के सिद्दांत का अनुसरण किया है जिसमें राजनैतिक, आर्थिक एवं सामाजिक न्याय प्रमुख अवयव है। राज्य सरकार इसके प्रति संवेदनशील है, यह सरकार की नीतियों का अभिन्न अंग रहा है। प्रारंभ में पंचायती राज संस्थाओं एवं नगर निकायों के प्रतिनिधियों के निर्वाचन में तथा प्रारंभिक शिक्षकों की नियुक्ति में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देकर सरकार ने महिला सशक्तिकरण की नींव रखी। पुलिस सब इंस्पेक्टर एवं कांस्टेबल की नियुक्ति में महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण, सभी पुलिस जिलों में महिला पुलिस जिले थाने की स्थापना, महिला बटालियन का गठन, 559 थानों में महिला शौचालय एवं स्नानागार की व्यवस्था तथा जीविका कार्यक्रम के तहत महिला-स्वयं सहायता-समूहों का गठन, महिला सशक्तिकरण के लिए उठाए गए विभिन्न कदम हैं। इन सभी पहल से महिलाओं के लिए रोज़गार के अवसर सृजित हुए, उनमें आत्मविश्वास का संचार हुआ और उनकी आत्मनिर्भरता बढ़ी है।
                             राज्य सरकार ने बालिकाओं की शिक्षा तथा स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया है। बालिकाओं को विद्यालय के प्रति आकर्षित करने एवं उनके अभिभावकों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से बालिका पोशाक योजना, बालिका सायकिल योजना लागू की गई।योजना के वर्ष 2007-08 में प्रारंभ के समय नवम वर्ग में पढ़ने वाली बालिकाओं की संख्या मात्र 1 लाख 63 हज़ार थी जो वर्ष 2016-17 में लगभग 9 लाख 47 हज़ार पहुंच गयी है। मैट्रीक परीक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण छात्राओं के लिए बालिका प्रोत्साहन योजना एवं हर ग्राम पंचायत में एक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की स्थापना की गई। इससे बालिकाएं उच्च शिक्षा के प्रतितो जागरूक हुई हीं साथ ही उनके गतिशील होने से सामाजिक अनुशासन एवं भागीदारी की नींव रखी गयी।
बच्चियों तथा माताओं के स्वास्थ्य के लिए भी सरकार ने निरंतर पहल की है। जननी बाल सुरक्षा योजना से संस्थागत प्रसव(institutional delivery) में आशातीत वृद्धि हुई। गर्भवती-शिशुवती माताओं को आशा एवं ममता जैसी प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं से स्वास्थ्य संरक्षण प्राप्त हुआ। वर्ष 2006-07 में सरकारी अस्पतालों में संस्थागत प्रसव हेतु मात्र 4 प्रतिशत महिलाएं आती थीं, जो वर्तमान में बढ़कर 63.8 प्रतिशत हो गया है। मातृ मृत्यु दर (MMR) वर्ष 2005 में 312 प्रति लाख था, यह वर्ष 2013 में घटकर 208 हो गया। राज्य में महिलाओं की औसत आयु, वर्ष 2006 में 61.6 वर्ष थी, 2014 में बढ़कर 68.4 वर्ष हो गयी। वर्ष 2005 में राज्य में शिशु मृत्यु दर (IMR) 61 प्रति हज़ार था, जो वर्ष 2017 के अनुसार घटकर 38 प्रति हज़ार हो गया। बिहार में नियमित टीकाकरण वर्ष 2005 में 18.6 प्रतिशत से बढ़कर 2016-17 में 84 प्रतिशत हो गया है।
राज्य सरकार ने आरक्षित रोज़गार महिलाओं का अधिकार निश्चय के तहत राज्य के सभी सेवा संवर्गों की सीधी नियुक्ति में महिलाओं के लिए 35 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण की व्यवस्था लागू की। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने हेतु अवसर बढ़े, आगे पढ़े, निश्चय के तहत जी.एन.एम संस्थान, महिला औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान एवं ए.एन.एमसंस्थान की स्थापना की जा रही है।विकसित बिहार के सात निश्चय में एक शौचालय निर्माण घर का सम्मान भी महिला सशक्तिकऱण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है जिससे ना सिर्फ महिलाओं में सुरक्षा का भाव उत्पन्न होगा बल्कि यह सामाजिक वातावरण को भी स्वच्छ बनाए रखने में सहायक होगा। महिलाओं की न्याय संगत पहुंच सुनिश्चित करने तथा उनके समग्र विकास हेतु अनुकूल वातावरण का सृजन करने के लिए मार्च 2015 में बिहार राज्य महिला सशक्तिकरण नीति, 2015 लागू की गयी।

जीविका परियोजना के तहत राज्य में 10 लाख स्वयं सहायता समूहों के गठन का लक्ष्य है, अबतक महिलाओं के 6 लाख 70 हज़ार स्वयं सहायता समूह गठित किए गए हैं जिसमें 78 लाख 20 हज़ार परिवार आच्छादित हुए हैं। वर्तमान में 41 हज़ार 311 ग्राम संगठन एवं 567 क्लस्टर लेवल फेडरेशन कार्यरत हैं। जीविका स्वयं सहायता समूहों की महिलाएं आर्थिक एवं सामाजिक रूप से सक्षम हुई हैं। यह एक मूक क्रांति है। उनकी सांगठनिक शक्ति का बेहतरीन उदाहरण शराबबंदी है।
बाल विवाह और दहेज प्रथा के विरूद्ध वर्तमान में विशिष्ट कानून लागू है। बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 के प्रावधानों के अनुसार लड़कों की शादी की उम्र 21 वर्ष और लड़कियों की शादी की उम्र 18 वर्ष निर्धारित है। इसी प्रकार दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 एवं समय-समय पर हुए इनके संशोधनों के अनुसार दहेज का लेन देन भी कानूनी अपराध है और कानून में दोषियों के लिए कड़ी सज़ा का प्रावधान है।बावजूद इसके दोनों कुरीतियां समाज में व्याप्त हैं। इन कुरीतियों के पूर्ण खात्मे के लिए इसके विरूद्ध सभी के सहयोग, सामाजिक अभियान की आवश्यकता है। बाल विवाह के कई कारण हैं यथा बालिका अशिक्षा, पिछड़ापन, गरीबी, लैंगिक असमानता, लड़कियों को लेकर असुरक्षा की भावना आदि।राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण IV, 2015-16 के अंतर्गत 20 से 24 आयु वर्ग की महिलाओं का पूरे देश में सर्वेक्षण हुआ है।इस आयु वर्ग में बिहार में 39.1 प्रतिशत महिलाओं का विवाह 18 वर्ष से कम में ही हो गया था जो देश में पश्चिम बंगाल के बाद दूसरा स्थान है। अर्थात राज्य के प्रत्येक 10 में से लगभग 5 लड़कियों का विवाह बालपन में ही हो जाता है। इस सर्वे में यह भी पाया गया कि बाल विवाह के कारण 15 से 19 आयु वर्ग की 12.2 प्रतिशत किशोरियांमां बन गयी थीं अथवा गर्भावस्था में थीं। बच्चों को जन्म देने के दौरान 15 वर्ष से कम उम्र की बालिकाओं की मृत्यु की संभावना 20 वर्ष की उम्र वाली महिलाओं की अपेक्षा पांच गुणा अधिक होती है। बाल विवाह के दुष्परिणाम केवल बालिकाओं तक ही सीमित नहीं रहते हैं बल्कि अगली पीढ़ी को भी प्रभावित करते हैं।बाल विवाह लड़कियों के शारीरिक, मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक विकास को प्रभावित करता है। कम उम्र में गर्भ धारण करने के कारण माताएंअस्वस्थ और कम अविकसित शिशु को जन्म देती हैं, जो आगे चलकर बच्चे बौनेपन एवं मंदबुद्दि के शिकार हो जाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के प्रतिवेदन के अनुसार बिहार राज्य में वर्ष 2006 से 2016 के बीच पांच वर्ष से कम आयु के लगभग 40 प्रतिशत बच्चे बौनेपन का शिकार हो रहे हैं। जन्म से बालिकाओं के प्रति भेदभाव के चलते ही राज्य में बालिकाओं का शिशु मृत्यु दर 46 तथा बालकों का 31 है। यह राज्य में लैंगिक असमानता को भी बढ़ाता है। किसी भी बालिका को उम्र से पहले विवाह के बंधन में बांधकर उन्हें अन्य मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित कर उनके सर्वांगीण विकास को बाधित करना उनके मानव अधिकार का हनन है। बालिकाओं की शिक्षा का राज्य तथा देश की जनसंख्या के स्थिरीकरण से बिल्कुल सीधा संबंध है। बेटियों का अगर बिना भेदभाव के समान रूप से पालन पोषण हो तो वे शिक्षित एवं आत्मनिर्भर बनेंगी और अपने तथा परिवार के लिए सहारा बनेंगी।

दहेज प्रथा एक सामाजिक कुरीति है, जो कानूनन अपराध होने के बावजूद समाज में पूरी स्वीकार्यता के साथ व्याप्त है। यह प्रथा समय के साथ और व्यापक हुई है और समाज के सभी वर्गों विशेषकर गरीब वर्गों को प्रतिकूल ढंग से प्रभावित कर रही है। कई परिवारों में लड़के वाले लालच में आकर अधिक दहेज के लिए नवविवाहिता को तंग तबाह करते हैं जो कई मामलों में आत्महत्या का कारण बनता है, अन्यथा दहेज हत्या का मामला बनता है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के वर्ष 2015 में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार वैसे तो महिला अपराध की दर में राष्ट्रीय स्तर पर बिहार का 26वां स्थान है पर दहेज मृत्यु(DOWRY DEATH) के दर्ज मामलों की संख्या में बिहार का स्थान देश में दूसरा है। दहेज मृत्यु के मामलों में 2.3 के दर के साथ बिहार एवं उत्तर प्रदेशप्रथम स्थान पर है जबकि राष्ट्रीय औसत दर 1.3 प्रतिशत है।

बाल विवाह एवं दहेज प्रथा की समस्या को गंभीरता से लेते हुए राज्य सरकार ने गांधी जयंती के शुभ अवसर पर इनके विरुद्ध अभियान प्रारंभ किया। बाल विवाह एवं दहेज उन्मूलन हेतु इस अभियान के अंतर्गत क्षमतावर्द्धन सह संवेदीकऱण के साथ-साथ जागरूकता संबंधी गतिविधियों का आयोजन किया जाएगा। इसके अतिरिक्त इनदोनों सामाजिक कुरीतियों के विरूद्ध लागू कानूनकी समीक्षा कर अपेक्षित संशोधन तथा इसके प्रभावी कार्यान्वयन हेतु संरचानात्मक बदलाव की कार्रवाई की जाएगी। 

Rajanish Kant रविवार, 26 नवंबर 2017