ब्याज दरों में कटौती का इकोनॉमी, आम लोगों के लिए मायने

रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने 29 सितंबर की पॉलिसी बैठक में प्रमुख दरों में 0.5% की कटौती कर सबको चौंका दिया। हालांकि, महंगाई में आ रही कमी और ग्रोथ को पटरी पर लाने की जरूरत की वजह से 0.25% की कटौती की उम्मीद की जा रही थी। रिजर्व बैंक की पॉलिसी बैठक हमेशा से काफी अहम मानी जाती रही है।

बैठक से पहले सरकार, बैंकर्स, इंडस्ट्री, लोन ग्राहक, बैंक ग्राहक, बाजार, करेंसी बाजार, इकोनॉमिस्ट हर किसी की नजर अगर किसी एक चीज पर टिकी रहती है तो वो हैं रिजर्व बैंक के गवर्नर। आखिर, क्यों होती रिजर्व बैंक की पॉलिसी बैठक इतनी महत्वपूर्ण और प्रमुख दरों में कटौती का हमारे और इकोनॉमी के लिए क्या मायने हैं...

-मॉर्गेज:प्रमुख दरों में कटौती का सीधा मतलब होता है कि बैंक भी ब्याज दरों में कटौती कर लोन ग्राहकों को इसका फायदा देंगे। ब्याज घटाने का मतलब लोन सस्ता होगा, जिससे होम लोन, कार लोन, पर्सनल लोन सहित सभी लोन सस्ते हो जाएंगे। कम ब्याज का मतलब इन सेगमेंट में लोन की मांग में बढ़ोतरी होगी जिसका असर बैंक की बैलेंश सीट के अलावा पूरी इकोनॉमी पर पड़ेगा। ऐसा माना जाता है कि जो लोग फ्लोटिंग रेट पर लोन लेते हैं उनकी EMI का बोझ भी कम हो जाएगा। हालांकि, फिक्स्ड रेट के लोन ग्राहकों को शायद ही इसका फायदा मिले।

-सेविंग्स: ब्याज दर घटने से लोन ग्राहकों को जहां फायदा होता है वहीं बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट में पैसे लगाने वालों को नुकसान उठाना पड़ता है। हमेशा देखा गया है कि रिजर्व बैंक जब भी प्रमुख दरों में कटौती करता है तो बैंक सबसे पहले डिपॉजिट रेट्स में कटौती करते हैं ताकि उनकी कॉस्ट ऑफ फंडिंग कम हो। ब्याज दर में कटौती होने पर बैंक में पैसा जमा करना पहले जितना आकर्षक नहीं रह जाता है।

-इकोनॉमी: हाल के दिनों में निवेश को लेकर सरकार और घरेलू इंडस्ट्री के बीच दो मुद्दों पर जमकर तकरार हुई। एक ब्याज दर काफी ऊंची होना और दूसरा कारोबार करने को आसान बनाने को लेकर सरकार का गंभीर नहीं होना। अधिक ब्याज पर लोन लेने से किसी भी कंपनी की निवेश लागत बढ़ जाती है जिसका असर उसके प्रोजेक्ट की वायबिलिटी पर होता है। रिजर्व बैंक द्वारा प्रमुख दरों में कटौती के बाद अब सरकार की जिम्मेदारी है कि कारोबार को वो और आसान बनाए और निवेश के माहौल में सुधार करे।

-करंसी: कम ब्याज का मतलब है कि जो लोग अपने निवेश पर अधिक रिटर्न चाहते हैं उनको निराशा हाथ लगेगी, इससे उस करंसी में पहले जितना निवेश नहीं आएंगा। यानी उस करंसी की मांग कम होगी और इससे वो करंसी कमजोर होगी। अगर अमेरिका का फेजरल रिजर्व ब्याज दर बढ़ाता है जिसकी चर्चा हर आए दिन हो रही है तो भारत और अमेरिकी निवेश से मिलने वाले रिटर्न का अंतर और कम होगा, जिससे हो सकता है भारत से पूंजी निकलकर अमेरिका जाने लगे।

((अगर अमेरिका में ब्याज बढ़ा तो भारत पर क्या होगा असर 
http://beyourmoneymanager.blogspot.in/2015/09/blog-post_9.html

((अमेरिका ने ब्याज दर स्थिर क्यों रखा 
http://beyourmoneymanager.blogspot.in/2015/09/blog-post_18.html

-इक्विटी मार्केट: प्रमुख दरों में कटौती का सबसे तेज और जोरदार असर इक्विटी मार्केट पर होता है। इसके कई कारण हैं। ब्याज सस्ता होने से सिस्टम में मांग बढ़ेगी, जिससे कंपनियों की आमदनी भी बढ़ेगी। इसके अलावा, इंडस्ट्री को सस्ता कर्ज मिलेगा, तो उनकी लागत कम होगी जिससे उनका मुनाफा बढ़ेगा और वैल्युएशन बेहतर होगा। ब्याज दर में कटौती का एक फायदा और होगा लोग कम आकर्षक रिटर्न वाले डेट
इंस्ट्रूमेंट के बजाय इक्विटी मार्केट में पैसे लगाने को प्राथमिकता देंगे।

((रिजर्व बैंक का तोहफा, रेपो रेट 0.5%घटाकर 6.75 % किया, CRR में बदलाव नहीं 
http://beyourmoneymanager.blogspot.in/2015/09/05-675-crr.html

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