डिबेंचर के बारे में जानें Know about Debenture

डिबेंचर को हिन्दी में ऋणपत्र कहते हैं। यह कंपनियों द्वारा निवेशकों से पैसे जुटाने का एक साधन है। कंपनियां इसके जरिये मध्यम से लेकर लंबी अवधि के लिए पैसे जुटाती है। डिबेंचर या ऋणपत्र एक तरह का प्रमाण पत्र होता है जो जानकारी देता है कि कंपनी निवेशकों को एक निश्चित राशि देगी। इस भुगतान में मूल राशि पर ब्याज और मैच्योरिटी होने पर पूंजी मिलती है। 

>डिबेंचर के प्रकार:  कंपनी की तरफ से तीन अलग-अलग तरह के डिबेंचर जारी किए जाते हैं, जो इस प्रकार हैं-

1- नॉन कनवर्टेबल (अपरिवर्तनीय-NCD) डिबेंचर:  इसमें डिबेंचर जारीकर्ता कंपनी की ओर से निवेशकों या खरीदारों को पूरी मूल राशि नगद मिलती है। इसे शेयर या इक्विटी में परिवर्तन नहीं करते हैं। 

नॉन-कंवर्टबिल डिबेंचर में दो विकल्प दिए जाते हैं। पहला क्यूमुलेटिव ब्याज  और दूसरा दैनिक ब्याज का विकल्प। 

क्यूमुलेटिव विकल्प में मैच्योरिटी के बाद ब्याज दर और प्रिंसिपल अमाउंट मिलता है। इससे पहले कोई भुगतान नहीं मिलती। 

वहीं रोजाना ब्याज के विकल्प में निवेशक को ब्याज समय-समय पर मिलता रहता है। यह त्रैमासिक भी हो सकता है और वार्षिक भी। यदि आप ऐसी निधि की तलाश में है जो आपकी दैनिक की आर्थिक आवश्यकताएं पूरी करे तो वार्षिक विकल्प बेहतर है। मैच्योरिटी तक रखने पर इसकी आय लांग टर्म कैपिटल गेन में आती है। यदि आप 30 प्रतिशत वाले टैक्स ब्रैकेट में  है तो आपके लिए क्यूमुलेटिव विकल्प बेहतर रहेगा।

2-पार्शियली कनवर्टेबल (आंशिक परिवर्तनीय-PCD): इसमें निवेशक या खरीदार को जारीकर्ता कंपनी द्वारा एक भाग नगद के रूप में मिलता है और दूसरे भाग को इक्विटी या शेयर में तब्दील कर दिया जाता है। 

3-पूर्ण परिवर्तनीय (फुली कन्वर्टेबल-FCD): इसमें डिबेंचर की पूरी कीमत को शेयरों में तब्दील कर दिया जाता है, नगदी कुछ भी रहता। साथ ऐसे डिबेंचर्स के मामले में डिबेंचर जारी करते समय उसके कन्वर्जन प्राइस का उल्लेख कर दिया जाता है। यानी इसमें निवेशक को ब्याज शुरुआती स्तर पर मिलता है। इस स्थिति में निवेशक को मूल राशि लौटायी नहीं जाती, सिवाय इसके कि निवेशक कंपनी में शेयरधारक ना हो।

> डिबेंचर की खास बातें: 
-डिबेंचर में बॉन्ड की तरह खरीदार को कंपनी की तरफ से ब्याज की एवज में ऋणपत्र मिलता है, लेकिन इसे कंपनियां ही जारी करती है।  
-इसे रखा भी जा सकता है और दूसरे को बेचा भी जा सकता है
-यह स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड भी होते हैं और नहीं भी होते हैं। 
-अगर यह स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट यानी सूचीबद्ध है तो इनका मूल्यांकन सेबी 
रजिस्टर्ड क्रेडिट रेटिंग एजेंसी करती है। 
-मैच्योरिटी पीरियड आमतौर पर तीन से 10 साल का होता है।

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